Mini London in Jharkhand: मैक्लुस्कीगंज – इतिहास, घूमने की जगहें और यात्रा गाइड
Mini London in Jharkhand:झारखंड की राजधानी रांची से करीब 64 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम और टोरी (चंदवा) से लगभग 25 किलोमीटर में बसा मैक्लुस्कीगंज एक छोटा सा पहाड़ी शहर है,जिसे “मिनी लंदन” के नाम से जाना जाता है।
यह जगह अपनी प्राकृतिक सुंदरता, औपनिवेशिक इतिहास और शांत वातावरण के लिए मशहूर है
हालंकि इसको बहुत से लोग नही जानते लेकिन लेकिन जो एक बार जाए लौट के नही आयेगा।
मैक्लुस्कीगंज न केवल एक पर्यटन स्थल है, बल्कि एक ऐतिहासिक धरोहर भी है,
जो एंग्लो-इंडियन समुदाय की कहानी बयां करता है, एंग्लो-इंडियन के बारे में नीचे जानेंगे।
और इस ब्लॉग में हम मैक्लुस्कीगंज के इतिहास, घूमने की जगहों, वहां पहुंचने के तरीके,
और ठहरने की व्यवस्था एवं यात्रा टिप्स के बारे में विस्तार से जानेंगे। अधिक जानकारी के लिए पूरे ब्लॉग में बने रहें।
Mini London in Jharkhand: मैक्लुस्कीगंज का इतिहास 
मैक्लुस्कीगंज की स्थापना 1933 में कोलोनाइजेशन सोसाइटी ऑफ इंडिया द्वारा की गई थी,
जिसका उद्देश्य एंग्लो-इंडियन समुदाय के लिए एक “मूलुक” (होमलैंड) बनाना था। ये एंग्लो इंडियन समुदाय कौन थे वो आगे बताएंगे।
इसकी नींव एक एंग्लो-इंडियन व्यापारी अर्नेस्ट टिमोथी मैक्लुस्की ने रखी थी।
मैक्लुस्की, जो कोलकाता में रियल एस्टेट और इंश्योरेंस एजेंट थे, उन्होंने इस क्षेत्र की जलवायु और प्राकृतिक सुंदरता से प्रभावित होकर इसे चुना।
उन्होंने छोटानागपुर के राजा, उदय प्रताप नाथ शाहदेव से 10,000 एकड़ जमीन लीज पर ली और 1932 में देश भर के लगभग 2,00,000 एंग्लो-इंडियन्स को यहां बसने का न्योता दिया।
1930 के दशक में, जब भारत में स्वतंत्रता संग्राम जोरों पर था, तब एंग्लो-इंडियन समुदाय ने अपनी पहचान को लेकर असमंजस में था।
क्योंकि वे न तो पूरी तरह ब्रिटिश थे और न ही भारतीय, जिसके कारण उन्हें एक अलग जगह की जरूरत महसूस हुई।मैक्लुस्कीगंज उनके लिए एक सपनों का शहर बन गया था।
लगभग 10 वर्षों के अंदर ही बहुत कुछ बदल गया
झारखंड के मिनी लंदन में लगभग 9 से 10 वर्षो के अंदर ही 1939 तक यहां करीब 250-300 एंग्लो-इंडियन परिवार बस गए।
इस दौरान शहर में औपनिवेशिक बंगले, बगीचे, चर्च, बेकरी, और अंग्रेजी जीवनशैली की झलक देखने को मिलती लगी।
लोग रविवार को चर्च जाते, बॉलरूम डांस करते, और शिकार का आनंद लेते हालांकि,
स्वतंत्रता के बाद और खासकर 1950-60 के दशक में, कई एंग्लो-इंडियन परिवार भारत छोड़कर विदेश चले गए।
आंखिर ये एंग्लो-इंडियन कौन थे और कैसे खत्म हो गए 
एंग्लो इंडियन ये समुदाय मुख्य रूप से उन लोगों से बना था, जिनके माता-पिता में से एक यूरोपीय (ज्यादातर ब्रिटिश) और दूसरा भारतीय था।
18वीं और 19वीं सदी में, जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में सक्रिय थी, कई ब्रिटिश पुरुषों ने भारतीय महिलाओं से विवाह किया या उनके साथ रिश्ते बनाए,
जिसके परिणामस्वरूप एंग्लो-इंडियन समुदाय का जन्म हुआ।
एंग्लो-इंडियन्स ने ब्रिटिश और भारतीय संस्कृति का एक अनोखा मिश्रण अपनाया।
वे अंग्रेजी बोलते थे, ईसाई धर्म का पालन करते थे, और पश्चिमी जीवनशैली को अपनाया, जैसे यूरोपीय कपड़े पहनना, बॉलरूम डांस करना और ब्रिटिश खान-पान की आदतें।
हालांकि, उनकी भारतीय जड़ों ने उनकी भाषा, खान-पान (जैसे मसालेदार करी) और सामाजिक रीति-रिवाजों में प्रभाव डाला।
ब्रिटिश शासन के दौरान, एंग्लो-इंडियन्स को रेलवे, डाक, और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में नौकरियां दी गईं, क्योंकि वे अंग्रेजी जानते थे और ब्रिटिश प्रशासन के लिए वफादार माने जाते थे।
लेकिन स्वतंत्रता के बाद, उनकी स्थिति बदल गई। कई लोग अपनी पहचान को लेकर असमंजस में थे और ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया या कनाडा चले गए।
आज भारत में उनकी आबादी कम है, लेकिन उनकी सांस्कृतिक धरोहर, खासकर मैक्लुस्कीगंज जैसे स्थानों में, अभी भी जीवित है।
हालांकि एंग्लो इंडियन के यहां से जाने के बाद आज यहां केवल 4-5 एंग्लो-इंडियन परिवार बचे हैं,
लेकिन इसके औपनिवेशिक बंगले और प्राकृतिक सौंदर्य इसे एक अनोखा पर्यटन स्थल बनाते हैं।
Mini London in Jharkhand:मैक्लुस्कीगंज में घूमने की जगहें 
मैक्लुस्कीगंज अपने शांत वातावरण, औपनिवेशिक इतिहास और प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है। यहां कुछ प्रमुख जगहें हैं जो आपकी यात्रा को यादगार बनाएंगी:
औपनिवेशिक बंगले (Colonial Bungalows)
मैक्लुस्कीगंज की सबसे खास बात इसके पुराने बंगले हैं, जो ब्रिटिश वास्तुकला की याद दिलाते हैं।
इनमें से कई बंगले अब गेस्टहाउस में बदल गए हैं, जहां आप ठहर सकते हैं।
इन बंगलों में लकड़ी की छतें, फायरप्लेस, और खूबसूरत बगीचे देखने को मिलते हैं।
कुछ बंगले, जैसे पॉटर बंगला, अब स्थानीय लोगों द्वारा अधिग्रहित कर लिए गए हैं, लेकिन उनकी संरचना अभी भी इतिहास की कहानी बयां करती है।
चट्टी नदी (Chatti River)
चट्टी नदी को झारखंड का “हिडन बीच” भी कहा जाता है। यह नदी मैक्लुस्कीगंज मार्केट से 5-7 किलोमीटर दूर है और रांची से लगभग 68-70 किलोमीटर की दूरी पर है।
नदी का एक हिस्सा चमकदार पानी से भरा है, जबकि दूसरा हिस्सा रेतीला है, जो मुंबई के मरीन ड्राइव जैसा अहसास देता है।
शाम के समय यहां सूर्यास्त का नजारा देखना बेहद खूबसूरत है।
नदी तक पहुंचने का रास्ता भी हरा-भरा और मनोरम है।
नकटा पहाड़ और शिव मंदिर (Nakta Pahad and Shiva Temple)
मैक्लुस्कीगंज से करीब 10 किलोमीटर दूर नकटा पहाड़ एक ट्रेकिंग के लिए शानदार जगह है। पहाड़ की चोटी पर प्राचीन नागेश्वर धाम शिव मंदिर है, जो बेहद रहस्यमयी और आकर्षक है।
मंदिर तक पहुंचने के लिए खूबसूरत सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं।
सावन के महीने में यहां भक्तों की भीड़ लगती है। ट्रेकिंग में 3-4 घंटे लग सकते हैं, लेकिन चोटी से बादलों के बीच का नजारा और सूर्योदय का दृश्य इसे यादगार बनाता है।
सेंट जॉन्स कैथेड्रल (St. John’s Cathedral)
1940 में बना यह चर्च Mini London in Jharkhand के मैक्लुस्कीगंज का एक ऐतिहासिक स्थल है।
चर्च में पुरानी लकड़ी की फर्नीचर अभी भी संरक्षित है, जो एंग्लो-इंडियन युग की याद दिलाता है। रविवार की प्रार्थना में शामिल होना एक अनोखा अनुभव हो सकता है।
देगा-डेगी नदी (Dega-Degi River) 
मैक्लुस्कीगंज से मात्र 2 किलोमीटर दूर यह नदी पिकनिक के लिए एक लोकप्रिय जगह है।
नदी के किनारे का हरा-भरा माहौल और कुंवर पतरा नदी का संगम इसे खास बनाता है।
यहां स्थानीय लोग और पर्यटक अक्सर समय बिताने आते हैं।
जागृति विहार (Jagrati Vihar)
Mini London in Jharkhand के मैक्लुस्कीगंज जोभिया में 20 एकड़ में फैला जागृति विहार एक स्वयंसेवी संस्थान है,
जो 1975 में अनाथालय और ग्रामीण विकास केंद्र के रूप में शुरू हुआ था।
यह जगह हरे-भरे पेड़ों और चट्टी नदी से घिरी हुई है। यहां हैंडलूम और पॉटरी प्रोडक्ट्स खरीदे जा सकते हैं।
विदेशी पर्यटक भी यहां सामाजिक मुद्दों पर सेमिनार में भाग लेने आते हैं।
मैक्लुस्कीगंज जंगल (McCluskieganj Forests) 
मैक्लुस्कीगंज के जंगल सैर और ट्रेकिंग के लिए बेहतरीन हैं।
यहां सॉल और महुआ के ऊंचे ऊंचे पेड़, रंग-बिरंगे पक्षी, तितलियां और जंगली फूल देखने को मिलते हैं।
जंगल में एक टूटा हुआ पुल भी है, जो जगह को विंटेज टच देता है।
सीता कुंड जलाशय (Sita Kund Reservoir)
यह जलाशय पिकनिक और आस्था का केंद्र है। आसपास घने जंगल हैं, जो इसे और आकर्षक बनाते हैं।
जो Mini London in Jharkhand में फिट बैठता है।
सर्वधर्म स्थल (Sarva Dharma Sthal) 
धुली गांव में स्थित यह जगह अनोखी है, जहां मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और चर्च एक साथ हैं।
यह मैक्लुस्कीगंज से कुछ किलोमीटर पहले है और एकता का प्रतीक है।
Mini London in Jharkhand:झुनझुनिया झरना (Jhunjhunia Waterfall)
मैक्लुस्कीगंज के पास यह झरना प्राकृतिक सुंदरता का एक नायाब नमूना है। मानसून के दौरान यह और भी खूबसूरत हो जाता है।
Mini London in Jharkhand यानी की मैक्लुस्कीगंज जाने की रास्ता
अगर आप झारखंड के बाहर से हवाई मार्ग से जा रहे तो सबसे नजदीकी हवाई अड्डा रांची का बिरसा मुंडा एयरपोर्ट है,
जो मैक्लुस्कीगंज से 64 किलोमीटर दूर है।
यहां से टैक्सी या बस लेकर पहुंचा जा सकता है।
और अगर रेल मार्ग से जा रहे तो मैक्लुस्कीगंज का अपना रेलवे स्टेशन है।
शक्तिपुंज एक्सप्रेस (हावड़ा से) सीधे मैक्लुस्कीगंज पहुंचती है, लेकिन यह रात 11:30 बजे के आसपास आती है।
बेहतर विकल्प रांची तक ट्रेन से आना है, जहां से बस या टैक्सी ली जा सकती है।
खलारी स्टेशन (6 किमी दूर) भी एक विकल्प है।
सबसे ज्यादा मज्जे तो सड़क रास्ते में जाने में है जो बहुत ही घने जंगल और खूबसूरत नजारे के साथ। रांची से मैक्लुस्कीगंज की जाया जा सकता है।
आप टोरी चंदवा होते हुए भी जा सकते है जो यह 2 घंटे का सफर है, जिसमें आप घने जंगल और पठारी इलाकों से गुजरते हैं।
नेशनल हाईवे 39 (रांची-डाल्टनगंज) मैक्लुस्कीगंज के पास से गुजरता है। रांची से बस या टैक्सी आसानी से उपलब्ध है।
मैक्लुस्कीगंज में ठहरने की व्यवस्था
मैक्लुस्कीगंज में होटल नहीं हैं, लेकिन औपनिवेशिक बंगले अब गेस्टहाउस में बदल गए हैं, जो ठहरने का सबसे अच्छा विकल्प हैं।
इन बंगलों में आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध हैं, लेकिन पुरानी वास्तुकला का आकर्षण बरकरार है।
जो भी एक बार जाए उसका ड्रीम डेस्टिनेशन बन जायेगा
झारखंड पर्यटन विभाग द्वारा संचालित एक गेस्टहाउस और रेस्तरां है। इसे झारखंड टूरिज्म की वेबसाइट से बुक किया जा सकता है।
होमस्टे: कई स्थानीय लोग होमस्टे की सुविधा देते हैं, जिन्हें पहले से बुक करना बेहतर है।
बजट: प्रति रूम रात का किराया 1500 रुपये से शुरू होता है।
नजदीकी होटल के लिए आपको बालूमठ (30 किमी दूर) जाना पड़ सकता है।
मैक्लुस्कीगंज घूमने का सबसे अच्छा समय
अक्टूबर से मार्च: यह सबसे अच्छा समय है, जब मौसम ठंडा और सुहाना रहता है। सर्दियों में तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस तक गिर सकता है,
इसी लिए तो Mini London in Jharkhand कहा जाता है ,और सुबह की ओस और कोहरा जगह को और खूबसूरत बनाता है।
मानसून (जुलाई-सितंबर): बारिश में मैक्लुस्कीगंज की हरियाली और नदियां अपनी चरम सुंदरता पर होती हैं।
चट्टी नदी और झुनझुनिया झरना इस समय देखने लायक होते हैं।
जून: आम प्रेमियों के लिए अच्छा समय है, क्योंकि मैक्लुस्कीगंज के आम के बगीचे इस समय फलों से भरे होते हैं।
मैक्लुस्कीगंज में खाने-पीने की व्यवस्था
मैक्लुस्कीगंज में रेस्तरां की सुविधा सीमित है। गेस्टहाउस में ही भोजन की व्यवस्था होती है, जहां स्थानीय और बेसिक भोजन मिलता है।
अगर आप दिन की यात्रा कर रहे हैं, तो रांची से खाना और पानी साथ ले जाना बेहतर है। रास्ते में छोटे ढाबे मिल सकते हैं, लेकिन ज्यादा उम्मीद न करें।
स्थानीय फुचका (पानी पूरी) स्टॉल भी एक छोटा सा स्नैक ऑप्शन हो सकता है।
मैक्लुस्कीगंज में करने योग्य गतिविधियां
प्रकृति की सैर: शहर की सड़कों पर टहलें और औपनिवेशिक बंगलों की वास्तुकला को निहारें।
ट्रेकिंग: नकटा पहाड़ पर ट्रेकिंग करें और सूर्योदय का नजारा देखें।
पिकनिक: चट्टी नदी, देगा-डेगी नदी, या सीता कुंड जलाशय के किनारे पिकनिक का आनंद लें।
बर्ड वॉचिंग: जंगलों में पक्षी देखने का शौक पूरा करें।
इतिहास की खोज: सर्वधर्म स्थल और सेंट जॉन्स कैथेड्रल में समय बिताएं।
यात्रा टिप्सपहले से बुकिंग करें: गेस्टहाउस या होमस्टे पहले से बुक करें, क्योंकि सीमित विकल्प हैं।
स्थानीय गाइड: रेलवे स्टेशन या टूरिस्ट हाउस से स्थानीय गाइड की मदद लें, जो आपको सही जगहों तक ले जाएगा।
कपड़े और जूते: ट्रेकिंग के लिए आरामदायक जूते और मौसम के अनुसार कपड़े साथ रखें। सर्दियों में गर्म कपड़े जरूरी हैं।
सुरक्षा: हाल के वर्षों में डॉन बॉस्को स्कूल के आने से सुरक्षा में सुधार हुआ है, लेकिन फिर भी सावधानी बरतें।
पर्यावरण का ध्यान: प्लास्टिक का इस्तेमाल न करें और प्राकृतिक स्थानों को साफ रखें।
मैक्लुस्कीगंज क्यों है खास?
मैक्लुस्कीगंज एक ऐसी जगह है, जहां समय ठहर सा गया है। यह शहर न केवल प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर है, बल्कि इतिहास और संस्कृति का एक अनमोल खजाना भी है।
यहां की शांति, औपनिवेशिक बंगलों की कहानियां, और हरे-भरे जंगल इसे एक परफेक्ट वीकेंड गेटअवे बनाते हैं।
झारखंड सरकार ने हाल ही में रांची से मैक्लुस्कीगंज तक हाईवे बनाया है, जिससे पहुंचना आसान हो गया है।
साथ ही, सरकार इसे एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजना बना रही है, जिसमें नदियों, पहाड़ों, और जंगलों के संरक्षण पर ध्यान दिया जा रहा है।
अगर आप प्रकृति, इतिहास, और शांति की तलाश में हैं, तो मैक्लुस्कीगंज आपके लिए एकदम सही जगह है।
अपनी अगली यात्रा में इस “मिनी लंदन” को जरूर शामिल करें और इसके अनोखे आकर्षण का अनुभव लें।
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